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का भईया, कोई बवाल त न होई :अयोध्या दर्शन.

Ground Report by Sushil Kumar Published 15 Sep. 2018






अयोध्या को जाने वाली ट्रेनें लखनउ जंक्शन से बाराबंकी-फैजाबाद के सिंगल लाईन के रास्ते लहलहाती खेतों को चरती नीलगायों की झांकी दिखाते हुए आपको 3 से 4 घंटे में तीन प्लेटफार्म में सिमटे अयोध्या जंक्शन पर उतार देती है । उतर रेलवे के लखनउ डिवीजन के आंकड़ों के अनुसार स्टेशन पर हर समय 952 यात्री मौजूद रहते हैं और 24 घंटों में 3504 यात्री आवाजाही करते हैं । वहीं अगले 40 सालों में हर दिन 4775 यात्रियों के आवाजाही करने का अनुमान लगाया गया है । वर्तमान में इस स्टोशन से कोई ट्रेन खुलती नहीं है लेकिन हर दिन इस जंक्शन से होकर 53 एक्सप्रेस और 4 पैसेंजर ट्रेनें गुजरती जरुर है । फरवरी 2018 में रेलवे राज्यमंत्री मनोज सिंहा ने 80 करोड़ की लागत से विश्व हिंदू परिषद के अयोध्या स्टेशन के राम मंदिर डिजायन को स्वीकृति देते हुए अयोध्या जंक्शन के पुनर्निर्माण की घोषणा करते हुए आधारशिला रखी और इस तरह पहली बार सरकार ने एक हिंदूवादी सांप्रदायिक संगठन का सरकारीकरण किया ।



नवंबर 2018 में 80 करोड़ रुपए यह के बजट बढ़कर 107 करोड़ हो गया और 14 नवंबर को अयोध्या के सांसद लल्लू सिंह ने भूमिपूजन किया । इस परियोजना की प्रारंभिक संरचना भारत सरकार के उपक्रम राईट्स लिमिटेड ने तैयार की है और बाहरी स्वरुप की रचना और संरचना बनाने में म्यूरलेज नामक वास्तुविद संस्था राइट्स का सहयोग कर रही है । वैसे आज का अयोध्या जंक्शन भारत सरकार के स्वच्छता वाले लिस्ट में कहीं नहीं लेकिन गंदगी वाले स्टेशन वाले लिस्ट में जरुर दर्ज है ।




स्टेशन से बाहर निकलते 20 से 25 फीट की गोबर से सनी कंक्रीट की सड़कें और सड़क किनारे अयोध्या नगर निगम के कुड़ेदान में भोजन तलाशती गायों और कूदती-फांदती बंदरों के झुंड के बीच सड़क के बायीं ओर विशालकाय चार-पांच सीता अशोक के पेड़ों की छांव में टोयटा के मिनी ट्रक पर लदे बड़े एल इ डी स्क्रीन पर रामानंद सागर के रामायण को उदास और खिन्न मन से निहारते जमीन पर बैठे 25-30 लोग दिखाई देते हैं । एक कस्बे की बतौर जो पहली तस्वीर दिखाई देती है उससे अयोध्या को लेकर आपका दिलोदिमाग खुद आपसे यह सवाल पूछने लगता है कि क्या वाकई में राम यहीं पैदा हुए थे और क्या सचमुच में बाबर आया था । कहीं दंतकथाओं वाले अयोध्या में तो नहीं पहुंच गए ।



खैर इन बुनियादी सवालों को छोड़ते हुए स्टेशन के सामने जाने वाली सड़क से कोई 1 किमी चलने के बाद रायगंज तिराहे पर पहुंचते हैं जहां दक्षिण किनारे पर सरकारी श्रीराम अस्पताल है और सड़क के बीचोबीच हथियार से लैस दर्जनभर पीएसी के जवान और अयोध्या कोतवाली के लोहे के पुलिसिया बैरिकेड । अयोध्या कोतवाली के इस बैरिकेड से पूरब की ओर जाने वाली सड़क उस फैजाबाद को जाती है जिसका नाम बदलकर अब अयोध्या हो गया है इसी सड़क पर बाबरी मस्जिद के मिल्कियत की लड़ाई लड़ रहे इकबाल अंसारी का घर और पंचर बनाने की दुकान है और अयोध्या की मस्जिदें भी । सड़क पर लाईन लगाकर खड़े विक्रम ऑटो से महज 10 रुपए में 7 किमी की दूरी तय कर फैजाबाद वाले अयोध्या में पहुंचा जा सकता है । 15 मिनट के इस सफर में आप लोहे के छडों में किलेबंद 67 एकड़ अधिग्रहित जमीन को देखा जा सकता है जिसकी सुरक्षा में सीआरपीएफ के जवान हमेशा तैनात रहते हैं लेकिन इसकी तस्वीर खींचने की मनाही है । इस फैजाबादी अयोध्या में अभी तक खाने-पीने पर कोई तुगलकी पाबंदी नहीं है, लेकिन नाम बदलते ही हिंदू सांप्रदायिक संगठनों ने खाने-पीने पर पाबंदी की मांग करने लगे हैं । वैसे आमतौर पर एटीएम से पैसा निकालने के लिए बाबरी मस्जिद वाले अयोध्या के लोगों को 20 रुपए खर्च कर इस फैजाबादी अयोध्या में ही आना पड़ता है क्योंकि बाबरी मस्जिद वाले अयोध्या में लगे एटीएम की मशीनों में पैसा नहीं रहता है ।




वहीं बैरिकेड से पश्चिम की ओर जाने वाली सड़क उस अयोध्या को जाती है जहां बाबरी मस्जिद की जगह पर आज राम के पैदा होने की बात कही जा रही है । इस रास्ते पर सबसे पहले बिड़ला धर्मशाला पहले आता है । आमतौर पर बिड़ला संचालित धर्मशालाओं में श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर ही दिखाई देता है । लेकिन, अयोध्या के इस 7 एकड़ में फैले बिड़ला धर्मशाला परिसर में एक ओर रामसीता मंदिर है और दूसरी ओर लोगों के रुकने के लिए होटलनुमा 28 कमरे । महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस 1934 के साल में इस बिड़ला धर्मशाला की नींव ऱखी जा रही थी और उसी 1934 के दौर में अयोध्या के अंदर दंगों की शक्ल में सांप्रदायिकता अपना इतिहास भी लिखा रहा था । 1934 के मार्च महीने में हुए दंगे में पहली बार बाबरी मस्जिद के दो गुंबदों को तोड़कर गिरा दिया गया था और स्थानीय प्रशासन ने इसके लिए अयोध्या के हिंदूओं को दोषी मानते हुए बतौर जुर्माना 1 लाख 25 हजार वसूल कर गुंबदों की मरम्मत कराई थी । इस 1934 का जिक्र करते हुए निर्मोही अखाड़ा के वर्तमान महंत दीनेन्द्रनाथ दास कहते हैं कि 1934 से बाबरी मस्जिद के अंदर कोई नमाज नहीं पढ़ी गई ।




बिड़ला धर्मशाला के सामने यानी रोड के बायीं तरफ लगभग 1 एकड़ में फैले वीरान पड़े अयोध्या के पुराने बस डिपो के बारे में धर्मशाला के बाहर मिट्टी के चुक्कड़ में चाय बेचने वाले राजेंद्र सोनकर बताते हैं कि इस बस डिपो को 1999 में सरकारी तौर पर बंद कर दिया गया और नयाघाट के बंदा तिराहा पर नया बस स्टैंड बनाने की घोषणा हुई लेकिन आज वहां पर पीएसी का कैंप और मेला कंट्रोल रुम है । अयोध्या से जनकपुर के बीच बस सेवा शुरु हो तो गई है लेकिन अयोध्या का अपना कोई बस डिपो नहीं है । अयोध्या आने वाले लोग एन एच 28 पर ओवरब्रिज के नीचे उतर जाते हैं और फिर 1 किमी पैदल चलकर अयोध्या आना पड़ता है । हां, इस बस डिपो के कैंपस में कभी-कभी सुरक्ष बल के लोग आकर जरुर कैंप या अपनी बसे लगा लेते हैं नहीं तो लवारिस गायों के लिए गौशाला तो हईए है । बिड़ला धर्मशाला के पश्चिमी चारदिवारी खत्म होते ही देहाती तरीके से गोबर के उपले में सतू की लिट्टी सेंककर खिलाने वाले राम निहोरा की बिना साईनबोर्ड वाली दुकान में 10 रुपए में दो लिट्टी खाते हुए लाल पत्थरों से बना हनुमानगढ़ी का किला को भी देखा जा सकता है ।




हवा-हवाई ऑटो और सायरन बजाती पुलिस-रैपिड एक्शन फोर्स की जिप्सियों की आवाजाही के बीच सड़क पर पश्चिम की तरफ कोई 500 मीटर चलने के बाद सड़क के बाएं साइड में तीस फीट उंची निर्वाणी आखाड़ा का मुख्यद्रार दिखाई देता है जिस पर आज भी बतौर अवध की प्रभुसता की निशानी एक दूसरे के चूमती हुईं दो मछलियों की आकृति दिखाई देती हैं । मुख्यद्वार पर पुलिस के जवान अखाड़े की सुरक्षा में 24 घंटे तैनात रहते हैं । इस मुख्यद्वार के अंदर निर्वाणी अखाड़ा के प्रमुख महंत बाबा धर्मदास का आश्रम है । निर्वाणी अखाड़े के इस मुख्यद्रार के गली-कूचे से होते हुए हनुमानगढ़ी भी पहुंचा जा सकता है । प्रोफेसर सुशील श्रीवास्तव कहते हैं कि यह वही हनुमानगढ़ी है जहां के संन्यासियों ने मुसलमानों का पीछा करते हुए पहलीबार 1853 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया था और इसी हनुमानगढ़ी के महंत बाबा अभिरामदास ने 1949 में ताला तोड़कर राम की मूर्ति रख बाबरी मस्जिद पर अपना कब्जा किया था ।




इस सड़क पर 300 मीटर चलने के बाद श्रृंगार हाट चौराहा आता है । इस चौराहे से दक्षिण की तरफ स्थाई रुप से पुलिस के बैरिकेड के पीछे जाने वाले 15 फीट के रास्ते के दोनों तरफ सिंदूर-चंदन-माले और प्रसाद में चढ़ने वाले लड्डू की दुकानें सजी रहती हैं और इस रास्ते के अंतिम छोड़ पर बिना रंग-रोगन वाला बंद पड़ा एक विशाल मंदिर । स्थानीय लोग बताते हैं कि अयोध्या के राजा साहब के परिवार में इस मंदिर पर संपति के अधिकार को लेकर न्यायिक विवाद चल रहा है, इसीलिए इस मंदिर की हालत दयनीय है । इस जीर्ण-शीर्ण विशालकाय मंदिर के पूरब में 70 फीट के कीले पर हनुमानगढ़ी मंदिर । श्रृंगार हाट चौराहे से उतर की तरफ रामघाट चौराहा, तुलसी स्मारक और तपसी जी की छावनी का रास्ता । इस छावनी के रास्ते पर दिंगबर अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, जमींदारों के महल, बीच रास्ते दलित एवं मुस्लिम मोहल्ला बेगमपुरा और विश्व हिंदु परिषद द्वारा संचालित कारसेवक पुरम है । इसी कारसेवक पुरम से विहिप के कार्यकर्ता अपने कार्यक्रम को चलाते हैं । इस श्रृंगार हाट चौराहे से पश्चिम की तरफ जा रही मेन रोड पर कतार में लगी दुकानों में बेस बॉल, हॉकी स्टीक की दुकान और इस दुकान के बाहर लगी तस्वीर में मर्यादा पुरुषोतम राम गुस्से और सिक्स पैक वाले राम के नए अवतार में दिखाई देते हैं । सावन के महीने में आने वाले कांवड़िया और रैली में आनेवाले नौजवान बेस बॉल-हॉकी स्टिक खरीदते दिख जाते हैं । कपड़ों के दुकानों के बाहर टंगे टीशर्ट पर सिक्स पैक वाले राम खूब बिक रहे हैं ।




मेन रोड पर चलते हुए 500 मीटर के फासले पर राम जन्मभूमि चौराहा आता है जहां पीएसी के जवान 24 घंटे एलर्ट रहते हैं तो वहीं मूकदर्शक मुद्रा में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति भी मौजूद है और साथ में पपत्थर की मूर्ति गढ़ने वालों की दुकानें भी । इस चौराहे पर लगे पुलिस के बैरिकेड से 1 किमी उतर-पूर्वी छोड़ पर 2.77 एकड़ की वह विवादित जमीन है जहां 6 दिसंबर 1992 से पहले तक बाबरी मस्जिद होता था और 6 दिंसबर 1992 को राम जन्मभूमि की खोज करते हुए मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया और अब मस्जिद की यह जगह बतौर राम जन्मभूमि बन चुकी है । इस जगह की सुरक्षा में तैनात पैरामिलिट्री के जवानों की जिम्मेदारी है कि लोगों को लाईन में लगाकर इस विवादित मस्जिद की जमीन पर तंबू में मौजूद बालक रुप राम का दर्शन कराएं । इस विवादित मस्जिद से सटे अमावा महराज के महल से लोगों की लाईन लगनी शुरु हो जाती है । सुरक्षा जांच के नाम पर बेल्ट, मोबाईल,बैग,कैमरा इत्यादि सभी निजी सामान लाईन लगाने से पहले जमा करवा लिया जाता है लेकिन साथ में सिर्फ बटुआ ले जाने की कोई मनाही नहीं है ताकि लोग दर्शन के दौरान चढ़ावा चढ़ा सकें । यहां पर चढ़ने वाले चढ़ावे को लेकर निर्मोही, निर्वाणी और विहिप समर्थित राम लला जन्मभूमि न्यास के बीच आपस में तलवारें खिंची हुई हैं । इस विवादित जगह से 80 गज उतर-पश्चिमी छोड़ पर कौशल्या भवन है जिसे आप राम जन्मस्थान भी कह सकते हैं क्योंकि ब्राह्मण महाकाव्य बताते हैं कि कौशल्या राजा दशऱथ की पत्नी और राम की मां थी ।




विश्व हिंदू परिषद से संबंध ऱखने वाले रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल बिहार के जमींदार रहे अमावा महराज के महल को बतौर मंदिर सजाने-संवारने में लगे हैं । कुणाल बताते हैं कि नरसिंह राव सरकार के दौरान हमारे इस अमावा महराज के महल एवं भूमि को छोड़कर विवादित ढांचे के आस-पास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया । गौरतलब है कि कुणाल नरसिंहराव सरकार के अयोध्या सेल में खुद ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) थे और शायद यही वजह रही कि विवादित मस्जिद परिसर के चारदिवारी से सटे होने के बावजूद अमावा महराज का महल अधिग्रहण के दायरे में आने से बच गया । कुणाल द्वारा संचालित महावीर मंदिर ट्रस्ट के तहत अयोध्या दर्शन के लिए आने वाले लोगों के लिए 7 एकड़ में फैले इस महल के परिसर में ऑटोमैटिक पानी पीने की मशीन और खाने की व्यवस्था की जा रही है ।





वापस जन्मभूमि चौराहे पर लौटकर पश्चिम की ओर जा रही मेन रोड पर 300-400 मीटर की दूरी तय करते हुए रोड के दांयी ओर छोटा सा पेट्रोल पंप और फिर चार कमरे में सिमटे अयोध्या कोतवाली को देखा जा सकता है । कोतवाली के गेट पर आर आर एफ मेरठ की छठी वाहिनी की गाड़ियां और गाड़ियों के भीतर सुस्ता रहे जवान अयोध्या के रोजमर्रे जिंदगी के हिस्सा बन चुके हैं । कोतवाली से आगे इसी मेन रोड पर श्रीनगर हाट पर अयोध्या के राजा का विशाल महल है जो रंग-रोगन के आभाव में खंडहरनुमा दिखता है । महल के बाहर 50 फीट उंचे दरवाजे पर राजा का अपना बहुरंगी झंडा आज भी फहरा रहा है और दरवाजे के चोटी पर बंद पड़ी दीवार घड़ी टंगी है । अयोध्या आने वाले लोग राजा के इस महल को राम का महल मानकर निहारते रहते हैं ।



प्रोफेसर सुशील श्रीवास्तव बताते हैं कि 1857 के विद्रोह के दौरान अयोध्या के शक्तिशाली ताल्लुकदार मान सिंह ने अंग्रेजों को शरण देने और भगाने में मदद की थी । विद्रोह कुचले जाने के बाद अंग्रेजों ने पुरस्कृत करते हुए शक्तिशाली हो चुके ताल्लुकदार मान सिंह के उतराधिकारी प्रताप नारायण सिंह (ददुआ) को ब्रिटिश सरकार ने अयोध्या राजा की पदवी प्रदान किया और यह राजमहल इसी राजा के समय में बनकर तैयार हुआ । आजकल इस महल में बतौर राजा के वंशज विमलेंद्रमोहन प्रताप मिश्र रहते हैं । लेकिन, अब यह राजमहल अब हेरिटेज होटल का रुप लेने जा रहा है । राज्य सरकार ने इसकी अनुमति राजपरिवार को दे दी है ।




राजमहल से आगे बढ़ते हुए यह मेन रोड रामघाट पर पहुंचती है । रामघाट के किनारे राजा-महराजा और जमींदारों द्वारा बनाए गए फ्रेंच या ब्रिटिश स्टाइल वाले बड़े-बड़े महल बने हुए हैं और हर महल के अंदर रामसीता का मंदिर है । इसी रामघाट पर अवध के नवाब सफदरजंग के शक्तिशाली वजीर नवलराय द्वारा बनवाया नागेश्वरनाथ का मंदिर है । रामघाट को पार करते हुए यह मेन रोड नयाघाट चौराहे पर आकर समाप्त हो जाती है । इस चौराहे से दक्षिण सरयू नदी, पश्चिम की ओर जिला गोंडा को पहुंचाने वाली पुल,पूरब की ओर एन एच 28 पहुंचाने वाली लिंक रोड और उतर-पूर्वी छोड़ पर सिमटी अयोध्या दिखाई देती है ।




अयोध्या की अपनी 50 हजार की आबादी में जहां एक ओर साधु-महंत एवं उनकी सेवा में तैनात सेवादार, आश्रम-अखाड़ों-महलनुमा मंदिरों में संस्कृत, वेद-पुराण पढ़ने वाले बच्चे और वहीं दूसरी ओर राम मंदिर के आसरे विकास की आश में बतौर दुकानदार, ऑटो ड्राइवर, जगह-जगह ठेले लगाकर चाय बेचने वाले, मंदिरों के लिए लड्डू बनाने वाले मेहनतकश लोग दिखाई देते हैं । आमदिनों में अयोध्या आने वाले लोगों से इन मेहनतकश लोगों को कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि सामान्यतौर पर इनकी रोजी-रोटी चलती रहती है । लेकिन, रैली और आंदोलन की शक्ल में आने वाले लोगों से इनकी रोजी-रोटी बुरी तरह प्रभावित हो जाती है । बीते 2018 में अयोध्या में अनेक रैलियां आयोजित हुईं, मसलन-तोगड़िया की अयोध्या कूच, शिवसेना की पहले मंदिर-फिर सरकार और विहिप का धर्मसंसद । इन रैलियों के दौरान लोग अपने तौर पर अयोध्या को बंद ही मान लेते हैं । शाहगंज में सड़क किनारे चाय की दुकान पर बैठे 70 वर्षीय रामनिवास अपने घर के लोगों से मोबाईल पर बतियाते हुए कहते हैं कि घर से निकले के जरुरत नाहीं,साग-सब्जी खरीद के ऱखदिहि,एक सप्ताह के व्यवस्था करलिहईं, बवाल हो सकेला । साथ में चाय दुकानदार छुटते बोल पड़ता है ई सब दुकनवा लूट लिहन । इस दिन यानि 25 नवंबर को विहिप ने धर्मसंसद के नाम पर एक रैली का आह्वान किया था । बिड़ला धर्मशाला के गेट से निकलते ही ठेले पर सुबह-सुबह चाय बेचने वाला राजेंद्र सोनकर अपने दुकान पर आने वालों से एक ही सवाल पूछता है का भईया कोई बवाल त न होई । आज के दौर में यही है अयोध्या दर्शन ।


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